Wednesday, August 31, 2011

Random Thoughts -3

चिडिया उड़ चुकी थी ...फुर्र्र्र ....वो समय वापस नहीं आ सकता था ............

चढ़ते सूरज को कौन नहीं पूछता ....हर कोई उससे रिश्ता बरकरार रखना चाहता था ....है...सिवाय उसके ......उस एक के .....उसकी बेरुखी ....नफरत ...आश्चर्य ....शायद इसीलिए वो लायक है ....वो सच्चा है ...न सिर्फ अपने अपने लिए बल्कि..उसका भी सच है ....उसकी आत्मा है  ..उसकी नज़रों में वो खुद को देखती है ......बिलकुल साफ़ ...क्यूंकि उसकी नफरत में ही अपनापन है ...वो खुद से भी तो उसी हद तक नफरत करती है ....उस एक की नज़रें आईना है जहाँ वो खुद को पहचानती है - साफ़ साफ़ देखती है ...शायद वो समझ नहीं पाता ....खुद ही अनभिज्ञ है और हमेशा जवाब ढूँढ़ते हुए आशंकित , आश्चर्य मिश्रित नज़रों से देखता है - जैसे कुछ जानना छह रहा हो , ढूंढ रहा हो ...सच पाना चाह  रहा हो.........

No comments: