पोशीदा ही रहने दो
आपबीती हमारी
गम शीनाज़ , हमराज़
तो हो चूका रुखसत
इजहारे जज़्बात को
सज़ा-ए- बेरुखी मिली
बेनजीर रिश्ते की
बुनियाद ही कमज़ोर थी
दस्तरस नहीं तुम तक
ख्याल तुहारा हर शु
बेइरादा नज़र उठ गयी ,
गुस्ताखी फिर भी माफ़ हो
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