Tuesday, August 30, 2011

har rishte ki umra hoti hai

कहते हैं हर रिश्ते की उम्र होती है . जीवन भर कोई किसी को याद नहीं रखता ....जल्द भूल जाता है . रिश्ते बनने आसान होते है ...आत्मीयता आने में समय लगता है ...पर फिर जब वो टूटने लगता है ....उसके खिचाव  से उत्पन्न दर्द ..पीड़ा ...ज़ख्म निशां छोड़ जाते हैं....सुराख छोड़ जाते हैं.
             उस एक ज़ख्म से उत्पन्न खालीपन को कौन भर पाता है ? जैसे एक जगह खरोंच आने से उस मांस की जगह दूसरा आ जाता है पर वही नहीं आता ...इसी तरह ....वो खालीपन ...उस रिक्तता को कोई नहीं.भर पाता है..रीता अनुभव  रह जाता है ....सच कोई नहीं भर पाता

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