कई बार आँखें
कहीं रुक जाती है
भ्रम होता है
तुम हो
कई बार कदम
चलते चलते रुक जाते हैं
भ्रम होता है
तुम हो
नज़रें हर अनजान में ढूँढती हैं
तुम्हारी प्रतिछवी
कि कभी तो लगता है
कहीं यकायक तुम टकराए
तो
पल भर शायद देखती रह जाऊं
विश्वास ही न हो
नज़रों का
धोखा समझ
आगे बढ़ जाऊं
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