ज़िन्दगी अपने रफ़्तार से चल रही है . ज्यादा अरसा तोह नहीं बीता पर समय के साथ हर साया अँधेरे में खोता चला गया ....चेहरे छिपते चले गए .कोई खींचता रहा उन सायो को , पर मुझे आज भी एक एक पल अपने उसी अंदाज़ में याद है . जैसे धीरे धीरे इच्छा ख़तम होती गयी और अब कुछ भी याद रखने की इच्छा नहीं होती - भूल जाना चाहते हुए भी हो नहीं पाता. हर दास्ताँ अपने निशां छोड़ते जाते है ....
कितने ही नाम जुड़ते गए और कितने कटते ....अब जब नया नाम जुड़ता है तोह जैसे एक खौफ सा घर कर जाता है - न जाने कब ...ये कब कट जाए - अकारण , बिना कहे
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