इन्द्रधनुष के पास
बादलों के पार
तारों पे चलने के
पांखी जैसे उड़ने के
सपने
रोज़ आते हैं
कुछ पूरे
कुछ अधूरे
कहीं भी
कभी भी
ये सपने रोज़ क्यूँ आते हैं?
हंसाते
रुलाते
गुदगुदाते
टूटते - बिखरते
समझाते
उलझाते
बहलाते
कहीं ठहरते
कभी भाग जाते
फिर भी
रोज़ आते हैं
सपने
खुली आँखों से
या बंद पलकों में
कुछ पाने के
कुछ बनने के
आस पे देखे जाते हैं
सपने
No comments:
Post a Comment