Monday, October 03, 2011

सपने

इन्द्रधनुष के पास
बादलों के पार
तारों पे चलने के
पांखी जैसे उड़ने के
सपने
रोज़ आते हैं

कुछ पूरे
कुछ अधूरे
कहीं भी
कभी भी
ये सपने रोज़ क्यूँ आते हैं?

हंसाते
रुलाते
गुदगुदाते
टूटते - बिखरते
समझाते
उलझाते
बहलाते
कहीं ठहरते
कभी भाग जाते
फिर भी
रोज़ आते हैं
सपने

खुली आँखों से
या बंद पलकों में
कुछ पाने के
कुछ बनने के
आस पे देखे जाते हैं
सपने

No comments: